5 lakh Stroke Deaths Because Of Climate Change? हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन ने चिंताजनक खुलासा किया है – Climate Change और stroke deaths के बीच एक संभावित संबंध पाया गया है। यह अध्ययन, जो अप्रैल 2024 में प्रतिष्ठित जर्नल “न्यूरोलॉजी” में प्रकाशित हुआ था, बताता है कि दुनिया भर में सालाना होने वाली stroke से आधे से अधिक मौतों (लगभग 5 लाख) का संबंध अत्यधिक Climate Change से हो सकता है।
आइए इस अध्ययन के निष्कर्षों को गहराई से देखें और विशेष रूप से India पर इसके प्रभावों को समझने का प्रयास करें।
Global Relations of Stroke Deaths Because Of Climate Change
अध्ययन में पाया गया कि अत्यधिक मौसम परिवर्तन, जिसमें तीव्र गर्मी की लहरें और अचानक ठंड का पड़ना शामिल है, stroke के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है। शोधकर्ताओं ने पाया कि:
2019 में दुनिया भर में लगभग 5 लाख लोगों की मौतें stroke से हुईं (5 lakh Stroke Deaths Because Of Climate Change), जिनमें से आधे से अधिक (लगभग 55%) का संबंध असामान्य तापमान से था।
ठंड का मौसम stroke के लिए विशेष रूप से खतरनाक प्रतीत होता है। अध्ययन के अनुसार 2019 में अकेले ठंड के कारण ही लगभग 4 लाख 74 हजार लोगों की मौतें stroke से हुई थीं ।
गौरतलब है कि अध्ययन केवल सह-संबंध स्थापित करता है, यह सीधे तौर पर साबित नहीं करता कि Climate Change ही stroke का कारण है।
हालांकि, यह सह-संबंध सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरे की ओर इशारा करता है। Climate Change के कारण मौसम में तेजी से बदलाव आ रहे हैं, जिससे अत्यधिक गर्मी और ठंड की घटनाएं बढ़ रही हैं। यह अध्ययन इस बात का संकेत देता है कि ये मौसम परिवर्तन स्ट्रोक के मामलों में वृद्धि का कारण बन सकते हैं।
India And Stroke Deaths Because Of Climate Change
दुनिया भर के आंकड़ों के अलावा, अध्ययन में भारत पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि:
2019 में भारत में लगभग 33,000 लोगों की मौतें स्ट्रोक से हुई थीं, जिनमें से लगभग 33,000 (लगभग 1/3) का संबंध असामान्य तापमान से था (Stroke Deaths Because Of Climate Change)।
दिलचस्प बात यह है कि भारत में स्ट्रोक के लिए अत्यधिक गर्मी और अत्यधिक ठंड दोनों ही खतरनाक साबित हुए।
अध्ययन में पाया गया कि इन 33,000 मौतों में से 55% से अधिक (लगभग 18,000 मौतें) ज्यादा गर्मी से जुड़ी हुई थीं। यह आंकड़ा भारत में बार-बार पड़ने वाली लू से मेल खाता है।
लेकिन अध्ययन में ये भी पाया गया कि लगभग 45% (लगभग 15,000 मौतें) ज्यादा ठंड के कारण भी हुई थीं।
यह निष्कर्ष महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दर्शाता है कि भारत में स्ट्रोक के लिए केवल गर्मी ही खतरा नहीं है, बल्कि अत्यधिक ठंड भी उतनी ही खतरनाक है। तापमान में अचानक उतार-चढ़ाव, चाहे वह गर्मी की तरफ हो या ठंड की तरफ, स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।
भारत समेत पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की चपेट में है। इसका असर न सिर्फ पर्यावरण पर बल्कि हमारी सेहत पर भी पड़ रहा है। हाल ही के अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन और भारत में स्ट्रोक के बढ़ते मामलों के बीच एक खतरनाक संबंध है। आइए इस रिश्ते को गहराई से समझते हैं:
1. गर्मी की लहरें - स्ट्रोक का तीव्र खतरा
भारत, खासकर इंडो-गैंगेटिक मैदानों और मध्य भारत में, अक्सर भीषण गर्मी का सामना करता है। climate change के कारण ये गर्मी की लहरें अधिक तीव्र और बार-बार हो रही हैं। ये तेज गर्मी और उमस स्ट्रोक का खतरा बढ़ा देती हैं। ऐसा कैसे होता है, आइए जानते हैं:
- शरीर का तापमान बढ़ना: तेज गर्मी शरीर के तापमान को तेजी से बढ़ा देती है। शरीर इसे संतुलित करने के लिए पसीना बहाता है, जिससे शरीर में पानी की कमी हो जाती है।
- खून गाढ़ा होना: डिहाइड्रेशन के कारण खून गाढ़ा हो सकता है, जिससे रक्त वाहिकाओं में थक्के जमने का खतरा बढ़ जाता है। ये थक्के मस्तिष्क तक जाने वाली रक्त धारा को रोक सकते हैं, जिससे स्ट्रोक हो सकता है।
- रक्तचाप बढ़ना: गर्मी के कारण रक्तचाप भी बढ़ सकता है, जो स्ट्रोक का एक प्रमुख जोखिम कारक है।
2. वायु प्रदूषण - स्ट्रोक का छिपा हुआ दुश्मन
भारत के कई शहरों में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। औद्योगिक उत्सर्जन, वाहन प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन इन प्रदूषण स्तरों को और बढ़ा रहे हैं। वायु प्रदूषण में मौजूद हानिकारक तत्व, जैसे कि धूल के कण और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, स्ट्रोक के खतरे को कई तरह से बढ़ाते हैं:
- रक्त वाहिकाओं को नुकसान: ये प्रदूषक रक्त वाहिकाओं की अंदरूनी परत को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे सूजन और रुकावट पैदा हो सकती हैं।
- खून का थक्के जमना: वायु प्रदूषण खून के थक्के जमने की प्रक्रिया को भी प्रभावित कर सकता है, जिससे स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
- सूजन: वायु प्रदूषण शरीर में सूजन बढ़ा देता है, जो स्ट्रोक के लिए एक जोखिम कारक है।
3. अतिवृष्टि के अप्रत्याशित परिवर्तन - स्ट्रोक का अप्रत्यक्ष प्रभाव
climate change से भारत में मानसून का पैटर्न बदल रहा है। अत्यधिक बारिश, बाढ़ और सूखा जैसी चरम मौसम घटनाएं अधिक बार-बार और तीव्र हो रही हैं। ये घटनाएं अप्रत्यक्ष रूप से स्ट्रोक के मामलों को बढ़ा सकती हैं, कैसे?
- शारीरिक चोट: बाढ़ और तूफान जैसी आपदाओं में चोट लगने का खतरा बढ़ जाता है। गंभीर चोटें कभी-कभी स्ट्रोक का कारण बन सकती हैं।
- स्थानांतरण और तनाव: आपदाओं के कारण लोगों को अपने घरों से बेघर होना पड़ सकता है। यह तनाव और जीवनशैली में बदलाव स्ट्रोक के जोखिम को बढ़ा सकता है।
- स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान: आपदाएं अस्पतालों और क्लीनिकों को नुकसान पहुंचा सकती हैं, जिससे लोगों को समय पर स्ट्रोक का इलाज मिलने में देरी हो सकती है।
What is a stroke?
स्ट्रोक तब होता है जब मस्तिष्क के किसी हिस्से में रक्त का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है या रक्त वाहिका फट जाती है। इससे मस्तिष्क की कोशिकाओं को ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं, जिससे मस्तिष्क क्षतिग्रस्त हो जाता है।
Prevention: Climate change से लड़ना, Stroke को रोकना
climate change के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए भारत सरकार अनुकूलन और शमन रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। ये रणनीतियां न केवल स्ट्रोक के मामलों को कम करने में मदद करेंगी, बल्कि समग्र स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाएंगी। कुछ महत्वपूर्ण उपाय इस प्रकार हैं:
- हीट कार्य योजनाओं का कार्यान्वयन: लू के दौरान लोगों को सुरक्षित रखने के लिए हीट अलर्ट सिस्टम और शीतलन केंद्रों जैसी सुविधाएं विकसित करना।
- वायु गुणवत्ता का निगरानी और विनियमन: वायु प्रदूषण के स्तरों की निगरानी करना और प्रदूषण फैलाने वाले कारकों को कम करने के लिए सख्त नियम लागू करना।
- स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाना: यह सुनिश्चित करना कि चिकित्सा सुविधाएं आपदाओं के लिए तैयार हों और स्ट्रोक के इलाज के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध हों।
- सतत कृषि और जल प्रबंधन को बढ़ावा देना: जलवायु के अनुकूल खेती के तरीकों को अपनाना और जल संरक्षण की तकनीकों को लागू करना ताकि भोजन और पानी की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।